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हिंदी कहानियां - भाग 196

नाम का डॉक्टर


नाम का डॉक्टर कालू बंदर लगभग छह साल बाद अपने घर काननवन में लौटा था। उसके हाथ में एक बड़ा सा बैग था और एक सफेद कोट कंधे पर लटका हुआ था। उसे देखकर नानू खरगोश ने पूछा, “अरे कालू भाई, इतने सालों तक कहां गायब हो गए थे? और ये क्या हुलिया बना रखा है, बिल्कुल डॉक्टर बाबू जैसे लग रहे हो।” कालू ने मुसकराते हुए कहा, “नानू भैया, मैं डॉक्टर जैसा लग नहीं रहा हूं, बल्कि डॉक्टर ही हूं। शहर में छह साल रहकर एमबीबीएस करके लौटा हूं।”  इतने में पास खड़े भोलू भालू ने बीच में ही पूछ लिया, “कालू, एमबीबीएस क्या होता है?” कालू ने हंसते हुए कहा, “डॉक्टरी के कोर्स को कहते हैं एमबीबीएस।” भोलू ने सिर हिलाते हुए पूछा, “क्या काननवन में  ही अस्पताल खोलोगे?” “हां काका, अब यहां के निवासियों को महंगा इलाज करवाने बाहर नहीं जाना पडे़गा।” कालू बंदर ने कहा। यह सुन नानू और भोलू बडे़ खुश हुए। काननवन में कालू ने अपना एक क्लिनिक खोला। उसके क्लिनिक पर रोजाना सैकड़ों मरीज अपना इलाज करवाने आने लगे। यह अलग बात थी कि कोई ठीक हो जाता, तो कोई स्वर्ग सिधार जाता। कभी कोई उसे अच्छा होने पर दुआ देता, तो कोई रोग ठीक न होने के कारण गालियां देता। लेकिन कालू की प्रैक्टिस जारी रही।  एक दिन पीलू हिरन की तबीयत अचानक खराब हो गई। उसके घर वाले उसे कालू की क्लिनिक पर लेकर आए। कई दिनों के इलाज के बाद भी पीलू को कोई आराम नहीं मिला। फिर भी कालू ने एक लंबा-चौड़ा बिल बना दिया। उस बिल को देखकर पीलू हिरन के घर वाले भौचक्के रह गए। उन्होंने कालू से पूछ ही लिया, “डॉक्टर  बाबू, आपने तो बड़ा लंबा-चौड़ा बिल थमा दिया हमें, जबकि पीलू को रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा? यह तो सरासर लूट है।” “आपके कहने का मतलब है कि मैं लुटेरा हूं? ऐसा है, तो आप अपने मरीज को कहीं और इलाज के लिए ले जा सकते हैं।” “वह तो हम ले ही जाएंगे, लेकिन।” पीलू के भाई ने कहा।  “लेकिन क्या?” कालू ने टोकते हुए पूछा। पीलू हिरन के भाई ने कहा, “आपने अभी तक जो इलाज किया है, उसकी पर्चियां हमें दे दें, ताकि बडे़ अस्पताल के डॉक्टर को दिखा सकें।” “नहीं, मेरे यहां की कोई पर्ची-वर्ची नहीं मिलेगी।” कालू चिल्लाया। कालू के इस व्यवहार से सभी अचंभे में थे कि अचानक उसमें ऐसा परिवर्तन कैसे आ गया? काननवन के कई बड़े लोगों ने कालू को समझाया लेकिन उसके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। आखिर में पीलू की हालत खराब होती देख, उसके घर वालों ने उधार रुपए लेकर कालू को दिए और पीलू को शहर के अस्पताल में ले गए। वहां के डॉक्टर ने सारी जांच करवाने के बाद पूछा, “आप पीलू का इलाज अब तक कहां से करवा रहे थे?”  पीलू के रिश्तेदारों ने कालू बंदर के बारे में डॉक्टर को बताया तो उसके कान खडे़ हो गए। डॉक्टर ने कहा, “इस नाम का डिग्रीधारी डॉक्टर तो इस इलाके में कोई नहीं है। हो न हो, यह कोई झोलाछाप फर्जी डॉक्टर होगा।” यह सुन पीलू के रिश्तेदारों के पैरों तले की जमीन खिसक गई।  पीलू का इलाज तुरंत शुरू हुआ और दो-चार दिन में उसे काफी आराम भी मिल गया था। इस बीच शहर के डॉक्टर ने काननवन की पुलिस को सूचना दी। थानेदार चीता सिंह ने कार्यवाही करते हुए कालू बंदर के क्लिनिक पर छापा मार दिया। पुलिस को देखकर कालू चुपचाप खिसकने लगा, तो चीता सिंह ने उसे दबोच लिया।  सारे काननवन में इस खबर के कारण तहलका मच गया। बूढ़े गजराज हाथी ने लंबी सांस भरकर कहा, “मैंने तो इनसानों में  सुना था कि मुन्ना भाई एमबीबीएस होते हैं, किंतु यहां भी...।” काफी पूछताछ के बाद कालू ने बताया कि उसे शहर में  धोखाधड़ी के आरोप में छह साल की जेल हो गई थी। बस, इस शर्म को छुपाने के लिए उसने एक फिल्म देखकर अपने आप को अपराधी बना लिया।  पीलू के रिश्तेदारों की सूझबूझ से एक और मुन्ना भाई पकड़ा गया। काननवन के राजा ने कालू बंदर को कठोर कारावास की सजा सुनाई। इतना ही नहीं, राजा शेर सिंह ने सभी को सुझाव दिया कि बिना जांचे परखे किसी डॉक्टर पर कभी विश्वास ना करे। ’

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